ज्ञान
ज्ञान - अभिमान - निपुणता, तक ना सही -
अज्ञानता - ये विनम्रता तक नहीं ;
कुछ ज्ञानी हो - न ये जान - ज्ञान का ।।
के बाटने से और बढ़े !
कुछ अज्ञानी ज्ञान की खोज में ;
शिक्षा - शिक्षण, तक नहीं ;
तकनीकी ज्ञान बढ़ाए जीवन का सौंदर्य,
दार्शनिक ज्ञान बढ़ाए बोध !!
शिक्षक के अनुबोधन से ही -
जीवन का अनुदेश हो ;
माँ के पालन में, जीवन का बोध हो !!
ज्ञान ये केवल शिक्षा तक नही -
ध्यान ये केवल दीक्षा तक नहीं ।।
पावन ये मन हो,
संदेश जो जीवन हो -
स्वयं के अनुचार से ;
विभिन्न ज्ञान के विचार से ;
सृष्टि ये आदि हो -
ना हो अंत - अतः सही !!
सभी शिक्षकों को नमन - ये जीवन
माँ - ना छूटे कहीं - सौभाग्य से
ज्ञान हो - शिकशन हो - विभिन्नता में ही
निराकार से आकर अनेकता से ही -
अंत में सब पाया - जब हो ज्ञान अपार ;
सब खोने का भय नहीं -
जब सिक्षा हो साथ ।।
-प्रोमिला देवी सुदर्शन हुईद्रोम
Comments
Post a Comment