आकांक्षा - प्रोमिला देवी सुदर्शन हुईद्रोम

 



आकांक्षाओं के पर लगे अब


उड़ने तक की है ये देर


ऊँचा आकाश नही अब


स्वपन की बारात नही अब


 



जैसे चिड़िया बनाए तिनके तिनके से ये घोंसला


ना हारे - ना हटे अपने इरादों पर - और ये होसला


उड़ने की बस चाह करे अब


उड़ान भरे और -  राह तय करे - सब


 



छोटा सा संतति बना अब


छोटे से इसी संतति में ही सब ।


एक समय था जब निहारना था आईना


आईना ही बस देखना रह गया


एक छवी - एक परछाई बस यही


था समझना - समझाना रह गया ।


टूटे थे कई आकार - अभिन्न


आईना था बेहतर ये - ना मन


जोड़ने की अपेक्षा कर ना जुड़ा


टूटने पर तो क्षण भर भी ना रुका


आईना ये टूटा ही - न मन


 



 


प्रत्यक्ष - अप्रत्यक्ष की ही बात है


सुकून की क्षमता रखें


टूटी भी- जुड़ी भी - इक पल - पल ही में ये रह गया -


 


 


 


 


 


शून्य से सब - आदि था


शून्य ही है - अब अंत


आदि - और अंत है- अनादि


प्रारंभ ही हुआ है अब


किन्तु - परंतु में उलझे थे तब


अब बोध हुआ - ये व्यर्थ सब

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