माँ - एक अनमोल रत्न by P. SUBHAOM KU. PATRO








एक ऐसी औरत जो संसार को मोहित कर देती है,

जो हर कष्ट को दूर कर एक बच्चे को जन्म देती है,

ऐसी संतान जो हर माँ-बाप को लक्ष्मी के रूप में वरदान है,

ऐसी प्राणी जो सब कुछ त्याग कर बच्चों को सुख देती है,

ऐसी प्राणी जिसकी किलकारियाँ सबको पिघला देती है,

वही स्त्री एक माँ कहलाती है ।


इसकी इज़्ज़त का सम्मान करना,

हर नागरिक का प्रथम दायित्व है ।

हर मनुष्य को अपने स्वार्थ पर चलना पसंद है,

लेकिन एक माँ ही है जो निस्वार्थ तरीके से चलती है,

इसकी पीड़ा की कदर करना,

और हर नर-नारी का उत्तरदायित्व है ।


इसकी नाराएँ हम कितना भी निरूपण करें,

लेकिन जो मानव इसकी जिल्लत करें,

वह पापी ठहराता है ।

हम सबको मिलकर, इसकी सम्मान के खिलाफ़ युद्ध करेंगे,

और एक भगवान रूपी औरत को विजयी साबित करेंगे ।


हे माँ, आपकी राय का मर्यादा करना,

हर मनुज की ज़िम्मेदारी है ।

हे तनुजा, तू तो माँ सीता की दूसरी रूप है,

तेरी सेवा करना हर मानुष का कर्म है ।

एक माँ की वचन मे ऐसी मिठास है जो एक गायक भी न गा सके ।

इसकी विशेषता की तुलना,

अगर हम करें तो माता पारवती भी हार जाएँ ।


अगर मैं माँ की व्याख्या का वर्णन करूँ,

तो इसकी जानकारी प्रदान करना असंभव है,

और इसकी महानता भगवानों के भगवान भी वर्णन न कर पाएँ ।

अंतिम पंक्तियों में मैं यही कहना चाहूँगा कि, 

एक ऐसा विषय जिसका कोई अंत न हो, वह विषय माँ ही है ।



ABOUT THE AUTHOR

मैं पी. शुभम् कुमार पात्रो एक छोटी सी उम्र से ही कविताएँ लिख रहा हूँ । कविताएँ वो लम्हों के अंश होते हैं जिन्हें हमारे साथ और सोच की जरूरत है । "मौजूद तो हूँ मैं इस दुनिया की भीड़ में, अब तलाश इन कविताओं से मेरे अस्तित्व को खोज रहा हूँ ।"

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